आपने महात्माओं को अक्सर कहते सुना होगा की प्रत्येक व्यकी का जीवन एक विशेष उद्हेयेश की पूर्ति के लिए होता है ! अतः हमें स्वयं को सदैयेव विशेष जानना चाहिए! अपने आपको कभी भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए!
परन्तु मुझे यह बात कभी एक व्यंग से प्रतीत होती है और कभी लगता है की यह एक वक्तव्य मात्र है जिसका वास्तविक जीवन से कोई सरोकार नहीं! ठीक वैसे है जैसे किसी ने कहा है "आदर्श यथार्थ की कठोर चट्टानों से टूट का चूर चूर हो जाता है "।
यदि आप संकीर्ण विचारधारा से हटकर स्वयं पर और अपने आस पास की दुनिया में रहने वाले लोगों पर नज़र डालें तो आपको अपनी और उनके जीवन में तनिक भी अंतर महसोस नहीं होगा।
हाँ यह भले ही हो सकता है की मेरे द्रष्टिकोण और किसी और के द्रष्टि कोण में थोरा बहुत अंतर हो । परन्तु जैसा की मैंने कहा की यदि हम संकीर्ण विचारधारा से हटकर सोचें , केवल तभी!
शेष और कभी ............